अफगानिस्तान: भूकंप में मलबे में दबी महिलाओं को बचाने में बाधक बने शरिया व रूढ़िवादी नियम

 काबुल, 6 सितंबर 2025 – पूर्वी अफ़गानिस्तान में आए भीषण भूकंप ने मोर्चा खोलते हुए लाखों लोगों को प्रभावित किया है। इसमें हजारों लोग मारे गए और घायल हुए हैं। लेकिन राहत प्रयासों में एक भयानक सत्य उभर कर सामने आया: तालिबानी शासन के कड़े धार्मिक नियमों और सामाजिक रूढ़ियों ने महिलाओं की जिंदगी बचाने की प्रक्रिया को दरकिनार कर दिया।


भूकंप और राहत अभियान की तस्वीर

Kunar और Nangarhar जैसे क्षेत्रों में आए दो शक्तिशाली भूकंपों में 1,400 से अधिक लोग मारे गए और 3,000 से ज़्यादा घायल हुए। टूटे हुए मकान और खराब मौसम ने राहत कार्यों को और जटिल बना दिया।

तालिबानी सरकार ने अंतरराष्ट्रीय मदद के लिए अपील की, लेकिन भरोसे की कमी और आवश्यक संसाधनों की कमी जैसे मुद्दे राहत कार्यों को प्रभावित कर रहे हैं।

शारीरिक संपर्क पर पाबंदी — महिलाएँ रह गईं बेहरा

तालिबानी नियमों के अनुसार, असंबंधित पुरुषों द्वारा महिलाओं को छूना पूरी तरह से वर्जित है — यहां तक कि आपात स्थिति में भी। इसी नियम के चलते कई महिलाएं, घायल या मलबे में दबी, राहत कार्यों से वंचित रहीं। बचाव दल ने पुरुषों और बच्चों को प्राथमिकता दी, जबकि महिलाओं को एक कोने में ही छोड़ दिया गया। उनके मदद के लिए किसी ने नहीं पूछा।
एक चिकित्सक व स्वयंसेवक का कहना है, “उनके साथ ऐसा लगता था जैसे वे महसूस नहीं की जा रही थीं”। घायल महिलाओं को बाहर निकालने के समय बचावकर्ताओं ने पुरुष रिश्तेदार न होने की स्थिति में उन्हें कपड़ों से खींच कर निकाला, ताकि सीधे संपर्क से बचा जा सके।

महिला राहतकर्मियों की कमी ने बढ़ाई जानलेवा परिस्थितियाँ

पिछले वर्षों में, तालिबान ने महिलाओं को NGOs में काम करने और मेडिकल शिक्षा प्राप्त करने से प्रतिबंधित किया है, जिससे महिला डॉक्टर और राहतकर्मी मुश्किल से ही राहत अभियानों का हिस्सा बन पा रहे हैं।
एक महिला डॉक्टर ने बताया कि प्रभावित इलाकों में राहत दल पहुंचा— लेकिन महिला मरीजों को इलाज के लिए बाहर निकलना मुश्किल था, क्योंकि संबंधित महिला सहायता कर्मचारी मौजूद नहीं थीं। तब स्थानीय बुजुर्गों से बात करने पर महिलाएं सहमति के बाद ही बाहर आईं और उपचार संभव हुआ।

निष्कर्ष

इस त्रासदी ने यह स्पष्ट कर दिया कि प्राकृतिक आपदाओं में महिलाओं की सुरक्षा प्राथमिकता नहीं होती — जब सामाजिक और धार्मिक कारक सार्वजनिक सहायता को रोकते हों। यह घटना मानवीय संकट से भी कहीं अधिक गहरा समस्या प्रस्तुत करती है जिहां धार्मिक अडचनों ने न्याय और बचाव कामों को बाधित किया।
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